सुनीता, एक अनपढ़ महिला थी, जिसने बचपन से ही ग्रामीण जनजीवन में रहने के कारण कभी शिक्षा पर ध्यान ही नहीं दिया। उसे न तो घर पर कभी शिक्षा का माहौल मिला और न ही कभी उसने स्कूल जाने की सोची।
भारत की राजनीति ऐसे ही अशिक्षित लोगों के बड़े वर्ग से चलती है। कहने का तात्पर्य है कि देश की एक बहुत बड़ी आबादी या तो अशिक्षित है या अल्प शिक्षा के साथ जीवन यापन कर रही है।
यही अशिक्षित लोग भारत की राजनीति का आधार हैं। हाँ! वही जिन्हें हम वोट बैंक भी कहते हैं। सुनीता जैसे लोगों को राजनीतिक पार्टियों द्वारा आसानी से धोखा देकर बहकावे में ले लिया जाता है।
आइए जानते हैं, आखिर क्या हुआ था सुनीता के साथ……
सुनीता की सादगी भरी जिंदगी
छत्तीसगढ़ के चंद्रपुर में रहने वाली 40 वर्षीय सुनीता सिलाई का काम करके जीवन यापन करती थी। सुनीता के पति पास के ही एक कंपनी में प्राइवेट नौकरी करते थे।
वैसे तो सुनीता की ज़रूरतें कम थीं, लेकिन फिर भी दोनों की कमाई से घर चला पाना बेहद मुश्किल हो रहा था। सुनीता के शांत और सरल स्वभाव के कारण गांव में उसे हर कोई बहुत अच्छे से जानता था।
मजबूरी में गांव छोड़ना पड़ा
पति-पत्नी की कमाई, घरेलू खर्चे के साथ-साथ बच्चों की पढ़ाई के लिए भी पर्याप्त नहीं हो पा रही थी। ऐसे परिस्थितियों में जीवन-यापन कर पाना बेहद कठिन होने लगा था।
सुनीता को न चाहते हुए भी उस घर, उस गली को छोड़ना पड़ा, जहाँ वह रोज़ शाम को बैठकर अपनी सहेलियों के साथ दुनियाभर की बातें किया करती थी। ये बेहद भावुक कर देने वाला पल था।
लेकिन एक गरीब व्यक्ति अपने निर्णय स्वयं कहाँ लेता है? उसे तो उसकी मजबूरियाँ, आर्थिक समस्याएँ फैसले लेने पर मजबूर करती हैं।
आखिरकार सुनीता ने बिलासपुर शहर के पास एक दूसरा मकान किराये पर ले लिया। वहाँ उसके पति ने अधिक तनख्वाह वाली जॉब पकड़ ली। सुनीता ने फिर एक बार अपनी सिलाई का काम शुरू किया।
यह कहना सही होगा कि उसकी आर्थिक परेशानियाँ अब थोड़ी कम होने लगी थीं।
बीएलओ ने नाम काटा – गलती या नियम
सुनीता के लगभग 3 वर्षों तक गांव वापस न आने के कारण गांव वालों को लगा कि अब वह पूरी तरह से गांव छोड़ चुकी है। हालांकि उसने अभी तक अपना घर नहीं बेचा था।
लेकिन गांव वालों के साथ-साथ वहाँ के बीएलओ को भी लगता था कि वह अब वापस यहाँ रहने नहीं आएगी।
बीएलओ – अगर आप बीएलओ के बारे में नहीं जानते तो आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि बीएलओ – बूथ लेवल अधिकारी को कहते हैं। इनका काम गांव में किसी भी व्यक्ति का नाम मतदाता सूची में जोड़ने, काटने या संशोधन करने का रहता है। आपके मोहल्ले/गांव में भी कोई न कोई बीएलओ ज़रूर होगा।
इसी तरह वहाँ के बीएलओ ने भी सुनीता का नाम पंचनामा (नाम काटने हेतु गांव के पाँच लोगों के हस्ताक्षर वाला सहमति पत्र) बनवाकर उसका नाम मतदाता सूची से काट दिया।
गांव वापसी और राजनीति का सामना
लंबे समय तक बाहर रहने के कारण सुनीता को बीच-बीच में अपने घर की याद भी आती थी। एक दिन सुनीता ने गांव आकर अपने घर की आवश्यक मरम्मत कराने का फैसला किया।
वह और उसके पति दोनों कुछ दिनों के लिए अपने गांव वापस आ गए। संयोग से उसी समय गांव में पंचायत चुनाव की तैयारी ज़ोरों-शोरों से चल रही थी।
सभी राजनीतिक पार्टियाँ चुनाव जीतने के लिए अपना पूरा ज़ोर लगा रही थीं। हर थोड़ी देर में कोई न कोई सुनीता के दरवाज़े पर खड़ा मिलता था।
दीदी, माता, बेटी जैसे अनेकों शब्दों से सुनीता को संबोधित कर उसे ही वोट देने को कहा जा रहा था।
लेकिन उसका नाम तो मतदाता सूची में था ही नहीं, जिस बात से सुनीता पूरी तरह से अनजान थी। गांव के कुछ लोगों ने बाद में सुनीता को बताया भी कि उसका नाम मतदाता सूची से काट दिया गया है।
अशिक्षा का एक काला सच यह भी है कि वह गांव में फैली हर बात पर विश्वास कर लेता है, लेकिन अपने स्तर पर कभी किसी बात की पुष्टि नहीं करता।
वोटिंग का दिन धोखे की शुरुवात
गांव में अब पंचायत चुनाव वाला दिन भी आ गया। सुनीता, जिसे गांव वालों ने मतदाता सूची में नाम न होने की सूचना दी थी, वो वोट डालने नहीं गई। दोनों पति-पत्नी घर पर ही आराम कर रहे थे।
तभी दरवाज़े पर एक दस्तक होती है…
“दीदी…. सुनीता दीदी..! कहाँ हो?”
सुनीता ने दरवाज़ा खोला। बाहर एक राजनीतिक पार्टी का आदमी खड़ा था। वो बिरजु था, जो सुनीता को काफी समय से जानता था। उसने कहा –
“अभी तक वोट डालने नहीं गई दीदी?”
इस पर सुनीता ने कहा –
“अरे! गांव वाले तो बोल रहे हैं कि मेरा नाम मतदाता सूची से काट दिया गया है। मैं भला कैसे वोट डाल सकती हूँ?”
बिरजु –
“क्या दीदी! तुम भी किसी की भी बातों में आ जाती हो। मैंने खुद तुम्हारा नाम मतदाता सूची में देखा है। और हाँ, ये तुम्हारी मतदाता पर्ची।”
ऐसा कहते हुए बिरजु ने एक पर्ची सुनीता के हाथों में दी। सुनीता को पढ़ना तो आता नहीं था। पर्ची देख उसने तुरंत ही विश्वास कर लिया कि उसका नाम सूची से काटा नहीं गया है।
इस पर सुनीता वोट डालने के लिए घर पर सो रहे पति को उठाने के लिए जाने लगती है। उसे जाता देख बिरजु फिर एक बार रोकता है और कहता है –
“अरे दीदी! उन्हें हम फिर से लेने आ जाएँगे। बाइक में तीन लोगों को बैठाना मुश्किल होगा। इसलिए तुम पहले चलो, मुझे वोट दो, फिर मैं इन्हें भी ले आऊँगा।”
सुनीता ने बिरजु की बात पर हामी भरी और चल दी वोट डालने।
फर्जीवाड़ा खुला जब वोटिंग रोक दी गई
बिरजु ने सुनीता को मतदान केंद्र के बाहर उतारकर अंदर जाने को कहा। सुनीता मतदान केंद्र कमरा नंबर 03 पर पहुँची।
वहाँ उसके आधार कार्ड और मतदाता पर्ची की जाँच की गई, और उसे रजिस्टर पर अंगूठा लगाने को कहा गया।
जैसे ही सुनीता अंगूठा लगाने वाली थी, तभी उसे अंदर से अधिकारी ने आवाज़ लगाकर रोक दिया और उसकी अच्छे से जाँच करने की बात कही गई।
जाँच पूरी होने के बाद उस अधिकारी ने सुनीता को बेहद ज़ोर की डाँट लगाई जिसे सुनकर सुनीता डर से सहम गई। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर हुआ क्या है।
वो अधिकारी सुनीता पर धोखाधड़ी कर फर्जी मतदान करने का आरोप लगा रहा था। सुनीता को किसी शकुंतला नाम की महिला की मतदाता पर्ची थमा कर वोट डालने भेज दिया गया था।
अशिक्षित सुनीता समझ नहीं पा रही थी कि वो क्या करे। उसे बाहर बैठाया गया। वो बार-बार कहती रही कि उसे इस बारे में कोई जानकारी नहीं है, वो तो अपना वोट डालने आई थी।
मामले को तूल पकड़ता हुआ देख बिरजु भी वहाँ से भाग खड़ा हुआ। इस बात के फैलते ही राजनीतिक पार्टियों ने वहाँ खूब हंगामा किया।
कुछ समय बाद पुलिस सुनीता को गिरफ़्तार कर चंद्रपुर थाने ले गई।
साजिश का भंडाफोड- जब बिरजु ने मारी पलटी
सुनीता के कथन अनुसार बिरजु को भी पूछताछ के लिए थाने बुलाया गया। बिरजु ने सुनीता को कोई भी पर्ची दिये जाने की बात को सिरे से नकार दिया।
बिरजु ने कहा कि –
“सुनीता ने उसे मतदान केंद्र तक ले जाने की बात कही थी, जिस कारण वह उसे अपनी बाइक में बैठाकर मतदान केंद्र तक ले गया था। लेकिन सुनीता के हाथ में किसी शकुंतला देवी की पर्ची होने के संबंध में उसे कोई जानकारी नहीं थी।”
अब सुनीता भी समझ चुकी थी कि उसे बुरी तरह फँसाया गया है। लेकिन वह चाहकर भी अब कुछ नहीं कर सकती थी। इस बात की सूचना सुनीता के पति को भी दी गई। सूचना मिलते ही वो भी पुलिस थाना पहुँच गए।
इस धोखे से टूटी हुई सुनीता उस दिन खूब रोई। मन में एक ही विचार आ रहा था कि काश उसने वो पर्ची किसी से पढ़वा ली होती, तो आज ऐसा नहीं होता।
आईपीसी की धारा-171डी – क्या कहता है कानून ?
किसी भी जीवित, मृत या कल्पित व्यक्ति के नाम से फर्जी वोट डालते हुए पाए जाने पर भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 171D लागू होती है।
इसमें अपराध सिद्ध होने पर एक वर्ष तक की सज़ा या जुर्माना या फिर दोनों ही हो सकते हैं।
🛑 चेतावनी:
मतदान एक संवैधानिक अधिकार है, लेकिन किसी और की पर्ची पर वोट डालना अपराध है। कृपया अपने पहचान पत्र से ही वोट दें।
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डिस्क्लेमर:
यह लेख पूरी तरह से एक काल्पनिक कहानी पर आधारित है। इसमें वर्णित पात्र, घटनाएं और परिस्थितियां लेखक की कल्पना का परिणाम हैं। इनका किसी भी वास्तविक व्यक्ति, स्थान या घटना से कोई संबंध नहीं है। यह सिर्फ पाठकों को जागरूक करने और कानूनी जानकारी देने के उद्देश्य से लिखा गया है। इसे किसी भी प्रकार की कानूनी सलाह न समझा जाए।
