चाहे मुझे चूम लो लेकिन चेहरा नहीं दिखाऊंगी– ये शब्द सुनकर ही कहानी के बारे में आप अंदाजा लगा लीजिए कि ये कहानी कितनी दिलचस्प कहानी होगी। राकेश कैसे उस नए शहर के पहली रात वहां अपने साथ हुए वारदात से चौक गया। तो आइए जानते है! चाहे मुझे चूम लो लेकिन चेहरा नहीं दिखाऊंगी इस कहानी के बारे में डिटेल से आखिर राकेश का ये सफर कहां तक चलता है।
बिहार का रहने वाला राकेश आज पहली बार गांव से दिल्ली आया था। रास्ता खराब होने के कारण दिल्ली बस स्टैंड पर बस रात के करीब 11:00 बजे पहुंची। अब बस से उतरकर राकेश टेक्सी का इंतजार करने लगा। दिल्ली शहर राकेश के लिए नया था, इसीलिए राकेश के दोस्त ने उसके लिए रहने की व्यवस्था करवा दी थी। लेकिन 1 घंटे से ज्यादा समय बीतने के बाद भी उसे टैक्सी नहीं मिल पाई थी।
तेज बारिश होने के कारण वह पूरा भीग चुका था और ठंड के कारण उसका बदन कप. कपा रहा था। अब रात के करीब 12 बज चुके थे। चारों ओर सन्नाटा पसरा हुआ था। सड़क पर कोई इंसान तो क्या जानवर भी नजर नहीं आ रहा था। राकेश का मोबाइल भी स्विच ऑफ हो गया था। वह अपने दोस्त को भी कॉल नहीं कर पाया। बारिश में भीगने के कारण राकेश की तबीयत बिगड़ने लगी थी। अब इतनी रात को वह मदद के लिए किसके घर के दरवाजे खटखटाएं उसे समझ नहीं आ रहा था ?
राकेश मन ही मन यह सोचने लगा कि शायद उसने दिल्ली आकर बहुत बड़ी गलती कर दी। लेकिन अब उसे इस बारिश में सुनसान सड़क पर भीगने से बचने के लिए किसी से तो मदद लेने ही थी लेकिन इस सुनसान सड़क पर कोई भी तो उसे नजर नहीं आ रहा था।
राकेश यह सब सोच ही रहा था कि अचानक उसे पायल की आवाज सुनाई दी। पहले राकेश को लगा कि उसका बहम है। लेकिन जैसे ही उसने सड़क से थोड़ी दूर झाड़ियों की ओर देखाए उसे फिर से पायल की आवाज सुनाई दी। यह पायल की आवाज झाड़ियों के पीछे से आ रही थी। राकेश पककी रोड से उतरकर झाड़ियों की तरफ धीरे-धीरे चलने लगा, लेकिन एक आवाज ने राकेश को जैसे थाम सा दिया।
बारिश बहुत तेज है! कब तक बारिश में भीगते रहोगे। इतनी रात को कोई जगह भी नहीं मिलेगी। अगर आप चाहें तो आज रात मेरे घर रुक सकतें हैं !
आवाज सुनकर राकेश झाड़ियां की ओर तेजी से चलने लगा। लेकिन फिर उसने अपने कदमों को रोक लिया। उसने सोचा कहीं कोई भूत तो नहीं। लेकिन फिर से उसे महिला की मधुर आवाज सुनाई दी।
डरो मत मैं तुम्हारी मदद के लिए ही आई हूं!
महिला की मधुर आवाज सुनकर राकेश जैसे एक ही पल में आवाज का दीवाना हो गया। लेकिन रात के 12:00 बजे सुनसान सड़क पर महिला कहां से आ सकती हैं ? यह सुनकर राकेश थोड़ा डर भी गया और डरते-डरते बोला-
इस शहर में नया हूं और मैं तुम्हें जानता भी नहींए तो तुम मेरी मदद क्यों करोगी ?
राकेश की बात सुनकर महिला जोर-जोर से हंसने लगी और धीरे.धीरे पेड़ के पीछे से राकेश के सामने खड़े हो गई।
महिला ने सफेद रंग की साड़ी पहनी हुई थी। जिसका साइड बॉर्डर पिंक कलर का था। बारिश में भीगने के कारण महिला की साड़ी पूरी गीली हो चुकी थी। बारिश की बूंदे महिला के शरीर पर गिरती हुई साफ-साफ दिखाई दे रही थी। जिसके कारण उसका बदन साफ-साफ नजर आ रहा था।
महिला के बदन को देखते ही राकेश की नजर महिला के खूबसूरत शरीर पर ही अटक गई। महिला का शरीर इतना ज्यादा आकर्षित था कि कोई भी मर्द अपना आपा खो सकता था। गोरा बदन और महिला से आ रही एक अजीब सी खुशबू से राकेश महिला को देखें बिना रह नहीं पा रहा था।
वह महिला के चेहरे को देखना चाहता था लेकिन महिला ने अपना चेहरा साड़ी के पल्लू से ढक रखा था। जिसके कारण महिला का शरीर ओर भी ज्यादा आकर्षित लग रहा था। राकेश महिला को देखकर अपना होश खोने हीं वाला था। अचानक महिला ने मुस्कुरा कर राकेश से कहा।
रात बहुत ज्यादा हो चुकी है और आपको इस समय यहां से कोई भी ऑटो या टैक्सी नहीं मिलेगी। इसलिए आप मेरे घर पर आज रात रुक सकते हैं। सुबह बारिश रुकते ही आप वापस चले जाना।
राकेश ने तुरंत महिला से पूछा ?
आप एक अनजान व्यक्ति को अपने घर पर क्यों ठहरना चाहती हैं। आपके घर में कौन-कौन रहता है। आपके परिवार वालों को शायद मेरा आना अच्छा ना लगे।
राकेश की बात सुनने के बाद महिला ने दबी और उदास आवाज में कहा !
गरीबों का इस दुनिया में कोई नहीं होता। मेरा भी इस दुनिया में अब कोई भी नहीं है। मैंने अपना सब कुछ खो दिया।
राकेश महिला से सब कुछ पूछना चाहता था। लेकिन महिला ने राकेश को चुप करवाते हुए कहां। रात बहुत हो चुकी है चलिए अब घर चलते हैं। राकेश के पास इतनी रात कहीं ओर जाने का कुछ ऑप्शन ही नहीं था। इसलिए राकेश महिला की बात मान गया और उसके पीछे-पीछे उसके घर की ओर चल दिया।
अब यहां से शुरू होती है चाहे मुझे चूम लो लेकिन चेहरा नहीं दिखाऊंगी ये कहानी का असली मतलब- पक्की सड़क से उस महिला का घर थोड़ा जंगल के रास्ते सुनसान जगह पर बना हुआ था। बारिश ओर भी तेज होती जा रही थी। एक अजीब सी खुशबू राकेश को महिला की ओर आकर्षित कर रही थी । राकेश का मन एक पल को ऐसा कर रहा था कि वह अभी महिला को अपनी बाहों में जकड़ ले और उसे चूमे। आखिर राकेश का ऐसे मन बहकना भी जायज था। वह अभी 23 साल का हुआ था। जवानी का जोश भरपूर था।
ऊपर से इस ठंडे मौसम में सुंदर महिला उसकी आंखों के सामने थी। महिला का बारिश में भीगा बदन हर किसी का चैन उडा सकता था। राकेश मन ही मन खुद से कह रहा था! काश यह लड़की मेरी पत्नी होती।राकेश को अपने ख्वाबों में खोए हुए 20 मिनट हो चुके थे। लगभग 2 किलोमीटर चलने के बाद आखिरकार एक छोटा सा घर राकेश को दिखाई दिया। घर की खिड़की में लालटेन जल रही थी।
आखिर यह महिला थी कौन ? क्या यह महिला सच में राकेश की मदद करना चाहती थी ? क्या राकेश को पता चल पाएगा कि ये महिला उसकी मदद क्यों कर रही थी ? क्या वो महिला उसको सच मे अनजाने में मिली थी या फिर उनका मिलना भगवान ने ही लिखकर भेजा था ?
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