Thursday, November 20, 2025
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Chapter 1 : प्रारम्भ – Beginning of a Love Story

ठण्ड वाली शाम थी । 3 रात से बिना सोए, अपने अंर्तमन में द्वंद्व लिये हुए-मैं परेशान, बिखरे हुए कपड़ों में तालाब किनारे बैठा हुआ था……. तब मैंने उसे पहली बार देखा ।

सफेद रंग की टी-शर्ट पहनी हुई… वो पतली सी लड़की!! होठों पर एक अजीब सी खामोशी लिये हुए – मानो मुस्कुराने पर कोई मूल्य निर्धारित हो । सर नीचे किये, छोटे कदमों से चलते हुए वो मेरी ही बैंच के दूसरे कोने में आकर बैठ गई ।

उसने एक हाथ उठाकर अपने बालों को हल्का-सा ठीक किया –
‘‘एक सुंदर युवा स्त्री को, अपने बालों से खेलता देख
भला आज तक कोई पुरुष अपने हृदय के आवेगों को रोक पाया है ?‘‘

अगर वो अनजान होती तो शायद हमारी बात कभी शुरु ही न होती । मगर वो दोस्त थी- मेरे उन दो दोस्तों की जो उस रोज मेरे साथ आये हुए थेः जय और उसकी प्रेमिका निशा।

कुछ देर इधर उधर की बातें करने के बाद मैंने उससे उसकी पसंद-नापंसद, पढ़ाई इत्यादि चीजों के बारे में पूछा ।
स्वभाव से थोड़ी शर्मीली नजर आ रही उस लड़की ने धीरे से अपनी नजरें मेरी ओर घुमाई और बहुत ही शांत लहजे में मेरी हर बात का जवाब दिया ।

बातें करते हुए हम इतना खो गये थे कि साथ आये दोस्तों को भी कुछ पल के लिये भूल गये ।
और सिर्फ दोस्त ही नहीं – वो समस्या भी, जिसे भूलाने ही तो मैं वहां आया था ।
जाने क्यूं… उस पल में ऐसा क्या था ।

उस खुशनुमा माहौल में जहां दो लोगों ने सारी दुनिया भुला दी थी । न तो वो इसे खत्म करना चाहती थी, न ही मैं…लेकिन क्या करें! जाना तो था ही ।

मगर बातचीत का जरिया चाहिये था – फोन नम्बर!
सोच ही रहा था कि कैसे मांगू… लड़की है, जाने क्या सोच ले मेरे बारे में ।

तभी उसने सामने से कहा –
‘‘आप मेरी पढ़ाई में मदद करोगे ?
मैंने मुस्कुराते हुए कहा – ‘‘हॉ, क्यों नहीं ।‘‘

शायद यही वो पल था – जहॉ एक लम्बी कहानी की शुरुवात होने जा रही थी ।

तब उसने सामने से मेरा नम्बर मांगा.. और मैंने खुशी-खुशी दे दिया ।

उसका वो पहला वाट्सएप्प का मैसेज – ‘‘हाय‘‘, जिसे आज तक संभाल के रखा है मैंने ।
तालाब की ठण्डकता के बीच दिल ने सुकुन भरी हवाओं को महसूस तो किया था। मगर ईरादा तो तूफान लाने का था ।

कुछ देर वहीं बैठने और इधर-उधर की बातें करने के बाद हम चारों एक ही बाईक पर शहर की सैर करने निकल पड़े। वैसे तो वो मेरे दोस्त के ठीक पीछे बैठी थी और मैं सबसे पीछे। लेकिन कहते हैं न जब समय ने ही किसी को मिलाना तय किया हो तो – दो अनजान राहों के रही भी मिल जाते हैं ।

मोड़ पर बाईक मुड़ी.. मेरी दोस्त की पैर एक गाड़ी से टकरा गई । दर्द से कराहती हुई वो लगभग गिर पड़ी थी तभी मैंने उसका हाथ पकड़कर संभाल लिया। जख्मी होने के कारण उसे फिर बीच में बैठा दिया ।

अब जो लड़की बीच में थी, ठीक मेरे सामने आ गई।

उसके वो लम्बे सुनहरे घने बाल:-
जब हवा से टकरा कर मेरे चेहरे पर पड़े, तो उसकी खुशबु मेरे हृदय तक जा उतरी।

अभी कुछ ही देर पहले तो हम मिले थे हम। और अब मैंने उसके कंधों को जैकेट के उपर से संभाल रखा था ।

ठण्डी हवा और उसके बालों की महक एक अलग ही वातावरण का अनुभव करा रही थी। मेरा उसके कंधे पर अपना हाथ रखना मानो शब्दों से बयॉ न किया जा सकने वाला पल था।

फिर लगा कि पता नहीं क्या सोचेगी ये मेरे बारे में… और हाथों ने खुद को वापस खींच लेना ही ठीक समझा ।

इधर अंधेरा होने को आया ।

चूंकि हम सब नॉन-वेजिटेरियन थे तो सबने साथ खाना खाने का प्लान बनाया ।
सोचा था, सब साथ बैठेंगे मगर पता नहीं उसे किस बात की जल्दी थी ।
वो जल्दी खाना खाकर अपने रुम जाने को तैयार हो गई ।

मेरे दोस्त ने कहा – ‘‘तू इसे घर छोड़ आ‘‘।
इतनी रात को एक अकेली अनजान लड़की को छोड़ने जाना, मुझे कुछ ठीक नहीं लगा। और मना करते हुए दोस्त को भी साथ चलने को कहा ।

वो भी बड़ा आलसी था ।

उसने साथ खुद न जाकर अपनी गर्लफ्रेंड को मेरे साथ भेज दिया ।

अब मैं दो कन्याओं को लेकर डिलिवरी बॉय की तरह उसके हॉस्टल के दरवाजे पर पहुॅचा –

माहौल भी कुछ-कुछ प्रोडक्ट डिलिवर करने जैसा ही लग रहा था ।

करीब 11ः00 बज चुके थे। उसका हॉस्टल बंद हो चुका था। कोई फोन भी नहीं उठा रहा था ।
मैंने हंसते हुए कहा-
‘‘कहो तो तुम्हे दिवार के उपर से दूसरी ओर उतार दूॅ‘‘
इस पर उसने मुझे अजीब से देखा और ‘‘न‘‘ में सर हिलाया ।

अचानक उसका फोन बजा ।
शायद हॉस्टल के किसी दोस्त का कॉल था। 05ः00 मिनट में दरवाजा खुल गया । उसने अपनी दोस्त और मेरे दोस्त की गर्लफ्रेंड को बाय कहा और चल दी अपने हॉस्टल के अंदर बिना एक बार भी पीछे मुड़े।

सच में कितनी मतलबी लड़की है…-‘‘मैंने सोचा।
उस रात खाना खाने के बाद बेड पर लेटे हुए, मैं देर तक उसके बारे में ही सोचता रहा। जाने ऐसा भी क्या था उसमें, जो मुझे उसकी ओर इस कदर खींचता चला गया ।

हर वो बात.. हर वो लम्हा – जो उससे जुड़ा था, आज भी मेरे दिल के किसी कोने में कैद है।

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