बचपन की तड़प
यह है कॉलेज की एक अनकही लव स्टोरी — एक ऐसी लड़की की कहानी, जिसने ज़िंदगी में बचपन से ही एक के बाद एक दुखों का पहाड़ देखा था। उसका नाम इषिका है।
तो आइए जानते हैं इषिका की बचपन की कहानी।
इषिका एक मिडिल क्लास फैमिली से थी, बिलासपुर के एक गांव की रहने वाली इषिका के घर में उसके मम्मी-पापा, छोटा भाई रूद्र और छोटी बहन रीना थे। उसके पापा कंपनी में वर्कर थे और मम्मी हाउसवाइफ़ थीं।
इषिका के भाई-बहन उससे काफी छोटे थे – भाई आठवीं क्लास में और बहन दसवीं क्लास में थी। इषिका के स्कूल की पढ़ाई खत्म हो चुकी थी, अब वह कॉलेज करना चाहती थी।
पिता की बेरुख़ी और घरेलू संघर्ष
इषिका के पापा भले ही अपनी कंपनी से अच्छा-ख़ासा पेमेंट पाते थे, लेकिन उनका मिज़ाज थोड़ा अलग था। उन्हें अपने परिवार की देखरेख से ज़्यादा अपनी सुख-सुविधाओं की चिंता थी।
मम्मी ही थीं, जो अपने पति के साथ जैसे-तैसे ज़िंदगी बिता रही थीं। कभी-कभी तो पापा घर में थोड़ा भी पैसा नहीं देते थे। उन्हें बाहर का चटपटा खाना और नशे की लत थी। वो हमेशा से घरवालों को दुख ही देते थे।
कभी-कभी तो इषिका के पापा की वजह से उन्हें भूखे पेट भी सोना पड़ता था। वो अपनी पत्नी को बहुत प्रताड़ित करते थे। एक बार तो उन्होंने हद कर दी — नशे में धुत होकर घर आए, और जब मम्मी ने खाना पूछा तो खाना उठाकर उनके ऊपर फेंक दिया, और पास रखे डीजल से जलाने की कोशिश करने लगे।
इतना होने के बाद भी मम्मी अपना पत्नी धर्म निभाते हुए कहती हैं — “क्या हो गया? आप इतने ग़ुस्से में क्यों हैं? मुझसे कोई ग़लती हो गई है क्या? प्लीज़ बताइए…” पर नशे में धुत इंसान को कोई असर नहीं हुआ! वो इषिका की मम्मी को मारने लगे।
इन सबसे परेशान माँ मुश्किल से अपनी जान बचाकर बच्चों को लेकर बरसात की रात बाहर निकल जाती हैं। ये मारपीट का सिलसिला हमेशा से चला आ रहा था, और यह सब अत्याचार अपनी मां पर होते हुए इषिका ने बचपन से देखा था।
इसी कारण से उसे अपने पापा के प्रति ज़्यादा स्नेह और सम्मान नहीं था।
पढ़ाई की चाह और पहली उम्मीद
अब जब स्कूल की पढ़ाई पूरी हो गई तो कुछ दिन वह घर में ही बैठी रही। उसे पढ़ाई का बहुत शौक था। उसने इस बारे में अपने पापा से कई बार कहा, लेकिन उन्हें परिवार से ज़्यादा खुद की फिक्र थी।
एक दिन मोहल्ले की एक महिला ने बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने वाले के बारे में पूछा। पहले तो इषिका ने हिचकिचाहट में मना कर दिया, लेकिन फिर पैसों की जरूरत को देखते हुए उसने कहा – “हाँ, मैं पढ़ा सकती हूं।”
इसके बाद धीरे-धीरे बच्चों की संख्या बढ़ी और वह ट्यूशन से मिलने वाले पैसों से अपनी कॉलेज की फीस जमा करने लगी।
कॉलेज की शुरुआत
अब उसके कॉलेज के एडमिशन फॉर्म भरने शुरू हो गए। वह अपनी कमाई से कॉलेज में दाख़िला लेती है। साथ ही ट्यूशन भी पढ़ाती रहती है। कॉलेज की पढ़ाई और ट्यूशन एक साथ संभाल पाना इषिका के लिए कठिन होता चला गया। कॉलेज की पढ़ाई खत्म होते-होते ट्यूशन क्लास में बच्चे भी कम होते गए। अंततः वह क्लास भी बंद हो गई।
सुमित और इषिका की प्रेम कहानी
उस दिन ठंडी हवा में जब इषिका छत पर बैठी थी, सर्दियों की वो पहली शाम अचानक तीन साल पुरानी यादों को जगा गई। जब पहली बार उसने सुमित को देखा था। वो लड़का, जो हर रोज़ उसके लिए गाना गाया करता था।
सुमित का मजाकिया स्वभाव और इषिका के लिए हमेशा उसका अपनापन] इषिका को उसकी ओर आकर्षित करता था । धीरे-धीरे दोनों की मुलाकातें बढ़ीं, साथ समय बिताने लगे। आखिर एक दिन वह समय भी आ ही गया जब सुमित ने इषिका को अपने दिल बात कह दी ।
पहले से ही सुमित की ओर आकर्षित हो चुकी इषिका ने बिना समय गँवाए उसे झट से हाँ कर दिया । उनका प्यार परवान चढ़ा और उनका रिश्ता तीन सालों तक बहुत अच्छा चला।
लेकिन वक्त को शायद कुछ और ही मंजूर था ! इषिका को यह जानकर झटका लगा, जब सुमित ने एक रोज अचानक शहर छोड़ दिया । न कोई अलविदा, न कोई वजह। बस एक चुप्पी रह गई।
बिछड़ने का दर्द और टूटता हौसला
सुमित के जाने के बाद इषिका टूट सी गई। वही गाने, वही लम्हें, वही यादें उसे रोज़ कचोटती थीं।
वो कहती थी —
“कुछ यादें अधूरी ही सही, लेकिन दिए हुए ज़ख्म कभी फीके नहीं पड़ते। कभी-कभी कुछ गानों के शब्द ही काफ़ी होते हैं पुराने ज़ख्मों को कुरेदने के लिए।”
पिता की बीमारी और जीवन की कठिनाई
अब उसके पापा की तबीयत बहुत बिगड़ गई। नशे की लत ने उन्हें पूरी तरह तोड़ दिया था। घर की हालत और भी ख़राब हो गई। इषिका और उसकी मम्मी ने रिश्तेदारों से मदद मांगी लेकिन किसी ने भी साथ नहीं दिया। इषिका ने ठान लिया कि वह अब कोई जॉब करेगी, चाहे जैसे भी हालात हों।
नौकरी की खोज और पहला इंटरव्यू
बहुत जगहों पर जॉब के लिए आवेदन किया, पर सफलता नहीं मिली।
आख़िर एक दिन कॉल आया — इंटरव्यू के लिए।
वो घबराई, लेकिन सहेली रश्मि के साथ इंटरव्यू देने गई। वहां उसके बॉस का नाम रूद्र था। शुरुआत में डर थी, लेकिन वो एक बहुत अच्छे, मिलनसार और हँसमुख इंसान निकले।
इषिका को जॉब मिल गई।
क्या ये कनेक्शन कोई कहानी है?
रूद्र और इषिका के बीच एक अलग ही कनेक्शन था।
बिन कहे एक-दूसरे की बातें समझ जाना, चुप्पियों में संवाद होना।
रूद्र के जीवन में भी कुछ ऐसा था कि उसे रिश्तों से डर लगता था।
इषिका भी सुमित के बाद टूट चुकी थी — उसे न प्यार पर यक़ीन था, न वादों पर।
फिर भी दोनों के बीच कुछ ऐसा था, जो समझ नहीं आ रहा था।
भविष्य की तलाश
इषिका को कई लोगों ने शादी के लिए कहा, लेकिन उसने हर बार यही कहा — पहले अपने पैरों पर खड़ी हो जाऊं, फिर शादी के बारे में सोचूंगी।
अब सवाल ये है —
क्या वाकई रूद्र और इषिका की ये कहानी कोई इत्तेफ़ाक है?
या ये भगवान द्वारा रची गई कोई नई शुरुआत?
अंत… या नई शुरुआत?
क्या इषिका को फिर से भरोसा मिलेगा?
क्या उसका टूटा हुआ दिल फिर से जुड़ पाएगा?
क्या रूद्र और इषिका का रिश्ता वक्त की कसौटी पर खरा उतर पाएगा?
जानने के लिए पढ़ते रहिए अगला भाग…
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सच में बहुत ही गहराई से लिखी हुई स्टोरी थी मैं इस स्टोरी का अगला episode का इंतजार करूंगा